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तराजू के साथ हाथी, लोकसभा की 13 सीटों पर फोकस; बसपा अकाली गठबंधन से किसको नुकसान?

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने पंजाब में प्रकाश सिंह बादल की पार्टी शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन का ऐलान कर दिया है. यह घोषणा मायावती के उस बयान के कुछ दिनों बाद हुई है, जिसमें उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने की बात कही थी.

मायावती और सुखबीर सिंह बादल के बीच गठबंधन को लेकर गुरुवार को करीब 1 घंटे से ज्यादा देर की मीटिंग हुई. इस बैठक में बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश मिश्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल भी मौजूद थीं.

पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में भी बीएसपी और शिरोमणि अकाली दल (शिअद)मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन गठबंधन को सीटों का ज्यादा फायदा नहीं हुआ. शिअद 18 सीटों से सिमटकर 3 पर पहुंच गई. वोट शेयर में भी काफी कमी आई थी. इसके बावजूद शिअद ने फिर से बीएसपी के साथ गठबंधन किया है.

पहले जानिए शिअद पंजाब में कितना मजबूत?
शिरोमणि अकाली दल की कमान 1970 के दशक में प्रकाश सिंह बादल को मिली. बादल अकाली दल से मुख्यमंत्री भी बने. 1977 के चुनाव में अकाली दल ने पंजाब के 13 में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद शिअद के भीतर बादल का दबदबा बढ़ता गया.

1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. इसके बाद पूरे देश में सिखों के खिलाफ हमले शुरू हुए. शिअद ने इसका भारी विरोध किया, जिसका फायदा पंजाब चुनाव में पार्टी को मिला. चुनाव में शिअद 13 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि, 1989 के चुनाव में पार्टी जीरो सीट पर सिमट गई. 1991 में भी पार्टी को चमत्कार नहीं कर पाई. इसके बाद कांशीराम के नेतृत्व वाली बीएसपी ने शिअद ने 1996 में गठबंधन किया.

शिअद और बीएसपी का यह गठबंधन प्रयोग हिट रहा. दोनों पार्टी मिलकर पंजाब की 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल कर ली. 2022 के चुनाव में भले शिअद के सीटों में इजाफा नहीं हुआ है, लेकिन पार्टी को 18 प्रतिशत मत मिले हैं. ऐसे में पंजाब में शिअद तीसरा फ्रंट बनाने की कोशिश में है.

पंजाब पॉलिटिक्स से बीएसपी का क्या वास्ता?
दलित नेता कांशीराम ने बीएसपी का गठन किया था, जो खुद पंजाब से आते थे. बीएसपी भले यूपी में ज्यादा सफल रही, लेकिन 1990 के दशक में पार्टी पंजाब में भी काफी मजबूत थी.

पंजाब चुनाव 1992 में बीएसपी को 9 सीटों पर जीत मिली थी, जिसके बाद वहां तीसरी शक्ति के रूप में पार्टी को माना जाने लगा. हालांकि, कांशीराम के निष्क्रिय होने के साथ ही बीएसपी पंजाब से सिमटती गई. पार्टी का दोआब इलाके में अब थोड़ा बहुत जनाधार बचा हुआ है.

दलित राजनीति करने वाली बीएसपी के लिए पंजाब एक मुफीद राज्य है. क्योंकि यहां करीब 33 प्रतिशत आबादी दलित समुदाय से आते हैं. राज्य की 117 सीटों वाली विधानसभा में 34 सीटें दलितों के लिए रिजर्व है.

2022 के चुनाव में बीएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली. पार्टी का वोट शेयर बढ़कर 1.73 फीसदी हो गया.

बीएसपी ने अकाली दल से क्यों किया समझौता?

बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा कि अब तक जितने भी गठबंधन हमने किए हैं. उसमें से अकाल दल ही ऐसी पार्टी है, जिसका वोट आसानी से ट्रांसफर हो जा रहा है.
मायावती फिर से बीएसपी को मजबूत करने में जुटी है. ऐसे में यूपी के अलावा अन्य राज्यों में सहयोगी ढूंढ रही हैं, जिसके साथ लड़कर जनाधार मजबूत किया जा सके.
बीएसपी और अकाली दल समझौता से किसे नुकसान?
1. कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुश्किल- बीएसपी का जनाधार पंजाब के दोआबा इलाके में है, जहां लोकसभा की 3 सीटें जालंधर, होशियारपुर और खद्दूर साहिब हैं. 2019 में जालंधर और खद्दूर साहिब से कांग्रेस और होशियारपुर से बीजेपी को जीत मिली थी.

कांग्रेस की जीती हुई जालंधर और खद्दूर साहिब में अकाली दल दूसरे नंबर पर रही थी. अगर बीएसपी और अकाली दल का गठबंधन कामयाब होता है, तो इन दोनों सीटों पर कांग्रेस को झटका लग सकता है.

2. आप के लिए भी राह आसान नहीं- 2022 के चुनाव में आप की एकतरफा जीत ने पंजाब में सारे समीकरण को ध्वस्त कर दिया था. अब राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद आप की नजर लोकसभा चुनाव पर है.ऐसे में अगर दोआबा इलाके में बीएसपी और अकाली दल गठबंधन मजबूत हुई, तो आप की राह में रोड़ा अटक सकता है. 2014 में आप पंजाब की 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

गठबंधन कामयाब हुआ तो बीएसपी मजबूत होगी
पंजाब की तरह ही बीएसपी हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और महाराष्ट्र में पांव जमाने की कोशिश कर रही है. अगर पंजाब में बीएसपी का गठबंधन फॉर्मूला लोकसभा चुनाव में कामयाब रहा, तो इसी फॉर्मूला को अन्य राज्यों में लागू कर सकती है. 2022 के यूपी चुनाव में करारी हार मिलने के बाद से ही मायावती बीएसपी में जान फूंकने की कोशिश में जुटी है.

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