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गोरखपुर: मातृ-शिशु पोषण पाठ्यक्रम और क्लिनिकल प्रैक्टिस का बनेगा हिस्सा, एम्स के 20 फैकल्टी किए गए प्रशिक्षित

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विस्तार

मातृ-शिशु पोषण को प्रदेश के उत्कृष्ट चिकित्सा संस्थानों के अंडर ग्रेजुएट छात्रों के पाठ्यक्रम व क्लीनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बनाया जाएगा। इसे लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अलग-अलग विभागों के 20 फैकल्टी प्रशिक्षित किए गए हैं। यह चार चिकित्सा संस्थानों को प्रशिक्षण और तकनीकी जानकारी देंगे।

प्रशिक्षण में बताया गया कि गर्भावस्था से लेकर 100 शुरूआती दिन मातृ-शिशु के जीवन और पोषण स्तर के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस दौरान मां को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए और मां के आहार को लगातार बढ़ाते रहना चाहिए। बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां का गाढ़ा पीला दूध दिया जाना चाहिए। छह महीने तक सिर्फ और सिर्फ मां का दूध दिया जाना चाहिए और छह महीने बाद दूध के साथ अर्धठोस पूरक आहार दिया जाना चाहिए।

प्रशिक्षण में बताया गया कि इन मुख्य संदेशों और तकनीकी को पाठ्यक्रम और क्लीनिकल प्रैक्टिस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। प्रशिक्षण से मिली जानकारी को एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा, झांसी मेडिकल कॉलेज, अंबेडरकर नगर मेडिकल कॉलेज और एम्स रायबरेली के फैकल्टीज तक पहुंचाया जाएगा। एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉ सुरेखा किशोर ने बताया कि मातृ-शिशु पोषण पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगा। इसकी तैयारी की जा रही है। इसे लेकर फैकल्टी के छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया गया है।

गर्भावस्था से जुड़ा है शिशु के पोषण का राज

  • गर्भावस्था में सही पोषण न मिलने से मां के पेट में पल रहा बच्चो कुपोषित हो सकता है।
  • संपूर्ण भोजन, नियमित वजन निगरानी और प्रसव पूर्व जांच, मां और शिशु के वृद्धि व विकास को सुनिश्चित करता है।
  • गर्भावस्था के दौरान मां का वजन लगभग 10 से 12 किलो बढ़ना चाहिए।
  • गर्भवती को दिन में कम से कम पांच बार खाना चाहिए, जिसमें तीन बार मुख्य भोजन और दो बार पौष्टिक नाश्ता होना चाहिए।
  • गहरे रंग की हरी पत्तेदार सब्जी, विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थ, साबुत दालें और फलियां, अनाज जैसे बाजरा, ज्वार, रागी, दूध या दूध से बनी चीजें मां के आहार का हिस्सा होनी चाहिए।
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Author: admin

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