आज हम आपको ब्लैक फंगस की बाजारों में मिल रही नकली दवाइयों के बारे में बताएंगे. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस मामले मे 10 लोगों को गिरफ्तार किया है, जो ब्लैक फंगस की बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा Ampho-tericin B (एंफोटेरिसिन बी) के इंजेक्शन को अधिकतम रिटेल कीमत से 5 गुना दाम पर बेच रहे थे.
मामला सिर्फ दवा की ब्लैक मार्केटिंग का नहीं
हालांकि ये मामला सिर्फ दवा की ब्लैक मार्केटिंग का नहीं है. दरअसल, ये लोग नकली दवा बनाकर उसे बेचते थे. इतना ही नहीं, ये न सिर्फ ब्लैक फंगस की नकली दवा बनाकर बेच रहे थे, बल्कि यही रैकेट कुछ दिन पहले नकली रेमडेसिविर बनाते हुए भी पकड़ा गया था. जिस व्यक्ति को 28 अप्रैल को नकली रेमडेसिविर बनाने के मामले में पकड़ा गया था, वो 8 मई को जमानत पर बाहर आ गया और फिर उसने अपने साथियों के साथ मिलकर ब्लैक फंगस के नकली इंजेक्शन बनाना और बेचना शुरू कर दिया.
भारत में नकली दवाओं का बाजार
WHO के मुताबिक, भारत और विकासशील देशों के कुल दवा बाजार में 10 प्रतिशत दवाएं नकली हैं. अमेरिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले भारत में 20 प्रतिशत नकली दवाएं बनाई और बेची जाती हैं. ये आंकड़े भारत की Pharmacy to the World वाली छवि को धूमिल करते हैं. लेकिन उससे भी बड़ी दुख की बात ये है कि ये नकली दवाएं और इंजेक्शन किसी की जान ले सकते हैं.
नकली इंजेक्शन से गंभीर साइड इफेक्ट
जून के पहले हफ्ते में मध्य प्रदेश के 3 शहरों में Ampho-tericin B (एंफोटेरिसिन बी) के नकली इंजेक्शन लगाए जाने की वजह से कई मरीजों में गंभीर साइड इफेक्ट हो गया था. मध्य प्रदेश में इस मामले की जांच चल रही है. आशंका जताई जा रही है इंजेक्शन नकली हो सकते हैं.
आज हमने इस पर एक रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको सावधान भी करेगी और ये भी बताएगी कि असली और नकली दवा के बीच फर्क करने के लिए आपके पास कौन से तरीके हैं. इसके अलावा आप ये भी जानेंगे कि अपने साथ हुई इस आपराधिक घटना की शिकायत कहां की जा सकती है.
500 से ज्यादा इंजेक्शन बेचे गए
देश में रेमेडिसिविर, एंफोटेरिसिन बी और टॉसिलिजूमैब ऐसी दवाएं थीं जिनके लिए लोग कुछ भी कीमत देने के तैयार थे. कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल होने वाली इन दवाओं की कमी का एक गिरोह ने खूब फायदा उठाया.
ये लोग नकली दवाएं तैयार कर रहे थे और फिर उसे ऊंची कीमत पर बेच भी रहे थे. दरअसल, ये गिरोह ब्लैक फंगस की एक्सपायरी दवाओं को सस्ते में खरीदकर उन्हें फिर से नया स्टिकर लगाकर 15 से 20 हजार में बाहर बेचता था.
गिरफ्तार होने से पहले 10 लोगों का ये गिरोह 500 से ज्यादा इंजेक्शन बेच चुका था और पुलिस को इनके पास से इंजेक्शन के 3 हजार वॉयल मिल चुके हैं. ये पूरा खेल को खुद को डॉक्टर बताने वाले दो लोग नियंत्रित करते थे. इसमें एक का नाम अल्तमश जबकि दूसरे नाम आमिर है.
जिस दौर में नकली दवाओं की सप्लाई हो रही थी. उस वक्त इन पर नकेल कसना मुश्किल था क्योंकि, लोग आंखें बंद करके बिना कुछ सोचे समझे इनसे नकली दवाएं असली समझकर खरीद रहे थे. इस गिरोह ने नकली इंजेक्शन लोगों तक पहुंचाने के लिए कई वॉट्सएप ग्रुप बनाए थे, जिनको कोविड रिलीफ दिल्ली, ह्यूमैनिटी नेवर डाइज और कोविड अलर्ट ग्रुप नाम दिया था. इसी के जरिए ये जरूरतमंद इंसान तक पहुंचते थे और फिर उससे नकली दवा देकर हजारों रुपये ठग लेते थे. हालांकि इस पूरे खेल का खुलासा भी बहुत दिलचस्प तरीके से हुआ.
ऐसे हुआ खुलासा
इंजेक्शन बनाने वाली फार्मा कंपनी ABBOT इंटरनेशनल को कुछ मेल मिले थे. इनमें कहा गया था कि दिल्ली में ब्लैक फंगस की दवाएं आसानी से मिल रही हैं. इन दवाओं के बैंच नंबर की जांच हुई तो वो फर्जी थे. इसके बाद दिल्ली ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट को शिकायत दी गई, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की.
देश में 10 से 11 कंपनियां ही ये इंजेक्शन बना रहीं
ब्लैक फंगस का इंजेक्शन भारत में केवल सरकार के जरिए ही बेचे जा सकते हैं. देश में 10 से 11 कंपनियां ही ये इंजेक्शन बना रही हैं. सरकार इनसे बहुत सारी सप्लाई खरीदकर राज्यों को जरूरत से हिसाब से दे रही है. बावजूद इसके नकली दवाएं बाजार में बिक रही हैं और इनकी पहचान करना भी मुश्किल हो जाता है.
डॉक्टर्स की भी मजबूरी है कि वो नकली और असली दवा में फर्क नहीं कर पाते हैं और ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है जिसमें नकली दवाओं को तुरंत चेक किया जा सके. नकली दवा का इस्तेमाल मरीज़ पर बुरा असर डालेगा ये तय है.
कोरोना वायरस से पहले ब्लैक फंगस के मामले पूरे देश में न के बराबर थे. इस वजह से इसकी दवा बहुत कम फार्मा कंपनियां बनाती थीं, लेकिन संक्रमण की दूसरी लहर के बाद ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़े, जिसकी वजह से उससे जुड़ी दवाइयों की मांग भी तेजी से बढ़ी.
पिछले 3 महीने में ही देशभर में इस बीमारी के 30,000 मामले आ चुके हैं. इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन सभी दवा कंपनियां मिलकर भी 2 लाख वायल से कम ही बना पा रही है.
हाल ही में सरकार ने कई और कंपनियों को इस दवा को बनाने की मंजूरी दी है. अगले 2 महीने में ये सप्लाई 6 लाख वायल तक बढ़ने की उम्मीद है.
हालांकि देश में इस इंजेक्शन की जरूरत 10 लाख वायल से ज्यादा है. जरूरत और उपलब्धता के बीच का जो अंतर है वही नकली दवा बनाने वालों के लिए अवसर बन जाता है. इसी वजह से न सिर्फ कानूनी रूप से ऐसे लोगों पर लगाम लगाना जरूरी है, बल्कि लोगों का भी जागरुक होना जरूरी है.









