Karnataka Election: गुजरात, हिमाचल के बाद अब कर्नाटक में भी BJP ने चला यूनिफॉर्म सिविल कोड का दांव, जानें क्या हैं सियासी मायने
करीब तीन साल पहले जिस मुद्दे ने देशभर में धरना प्रदर्शन और आंदोलन खड़े कर दिए थे, उसी मुद्दे को लोकसभा चुनाव से पहले फिर से गर्माया जा रहा है. बीजेपी की तरफ से कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एनआरसी और समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही गई है. जिससे ये साफ हो चुका है कि आने वाले चुनावों में बीजेपी इन दोनों मुद्दों को जमकर उछालेगी और इसका सियासी फायदा लेने की कोशिश होगी. खासतौर पर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बीजेपी काफी सक्रिय नजर आ रही है, कहा जा रहा है कि 2024 चुनावों से पहले बीजेपी सरकार अपने इस महत्वकांक्षी मुद्दे को लागू भी कर सकती है. आइए बीजेपी मेनिफेस्टो में शामिल इन दोनों मुद्दों को लेकर पूरे विवाद और बीजेपी की महत्वकांक्षा को समझते हैं.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ से मेनिफेस्टो (संकल्प पत्र) जारी कर दिया गया है. इसे जनता का घोषणापत्र बताया गया. बीजेपी ने कहा कि जनता से राय लेने के बाद ही पूरा मेनिफेस्टो तैयार हुआ है. जिसमें समान नागरिक संहिता और एनआरसी को लागू करने की बात कही गई है. ये दोनों ही मुद्दे ऐसे हैं, जिनका जमकर विरोध हुआ है और बीजेपी ने हर बार इन्हें लागू करने की बात कही है.
समान नागरिक संहिता बीजेपी का महत्वकांक्षी मुद्दा
बीजेपी के लिए कई ऐसे मुद्दे थे, जिन्हें सरकार में आने के बाद पार्टी पूरा करने में जुट गई. ये मुद्दे जनसंघ के जमाने से बीजेपी के घोषणापत्रों का हिस्सा थे, इनमें आर्टिकल 370 को खत्म करना, तीन तलाक और राम मंदिर निर्माण जैसे बड़े मुद्दे शामिल थे. समान नागरिक संहिता को लागू करना भी बीजेपी की इसी महत्वकांक्षी मुद्दों की लिस्ट में शामिल है. क्योंकि बाकी तमाम बड़े वैचारिक मुद्दों पर पार्टी पहले ही फैसला ले चुकी है, ऐसे में इसे बीजेपी सरकार का अगला टारगेट बताया जा रहा है. साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के मेनिफेस्टो में भी बीजेपी ने इसे शामिल किया था.
सिर्फ कर्नाटक चुनाव ही नहीं बीजेपी ने इस मुद्दे पर वोटों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कई राज्यों में की है. इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के मेनिफेस्टो में भी समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही गई. जिसका अब कुछ भी अता-पता नहीं है. इसके अलावा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी बीजेपी सरकारों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की घोषणा की थी.
समान नागरिक संहिता बीजेपी का महत्वकांक्षी मुद्दा
बीजेपी के लिए कई ऐसे मुद्दे थे, जिन्हें सरकार में आने के बाद पार्टी पूरा करने में जुट गई. ये मुद्दे जनसंघ के जमाने से बीजेपी के घोषणापत्रों का हिस्सा थे, इनमें आर्टिकल 370 को खत्म करना, तीन तलाक और राम मंदिर निर्माण जैसे बड़े मुद्दे शामिल थे. समान नागरिक संहिता को लागू करना भी बीजेपी की इसी महत्वकांक्षी मुद्दों की लिस्ट में शामिल है. क्योंकि बाकी तमाम बड़े वैचारिक मुद्दों पर पार्टी पहले ही फैसला ले चुकी है, ऐसे में इसे बीजेपी सरकार का अगला टारगेट बताया जा रहा है. साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के मेनिफेस्टो में भी बीजेपी ने इसे शामिल किया था.
सिर्फ कर्नाटक चुनाव ही नहीं बीजेपी ने इस मुद्दे पर वोटों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कई राज्यों में की है. इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव के मेनिफेस्टो में भी समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही गई. जिसका अब कुछ भी अता-पता नहीं है. इसके अलावा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी बीजेपी सरकारों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की घोषणा की थी.
अमित शाह ने किया ऐलान
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कई मौकों पर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के संकेत दिए, लेकिन हाल ही में उन्होंने महाराष्ट्र के कोल्हापुर में इसे लागू करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा, “भारतीय जनता पार्टी की सरकारें कॉमन सिविल कोड की दिशा में आगे बढ़ गई हैं. हम सभी लोग नारे लगाते थे- जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है… एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान नहीं चलेंगे. कभी आप सोचते थे कि धारा 370 हटेगी? मोदी जी ने 5 अगस्त को कलम के एक झटके से इसे उखाड़कर फेंक दिया.”
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट
कर्नाटक जैसे राज्य में एनआरसी की बात करना और यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा करना बीजेपी की किस रणनीति का हिस्सा है? इस पर हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई से बात की. जिसमें उन्होंने बताया कि ये सब कुछ सिर्फ माहौल बनाने के लिए किया जा रहा है. दोनों ही चीजों को लागू करना इतना आसान नहीं है. किदवई ने कहा, “यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर अब तक सरकार कोई भी मसौदा या प्रस्ताव लेकर नहीं आई है. लॉ कमीशन ने कई बार कहा है कि देश का जो सामाजिक ढांचा है उसके तहत फिलहाल यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना संभव नहीं है. अगर सरकार वाकई में इसे लेकर सोच रही है तो उसे प्रस्ताव लाकर सभी दलों के साथ मिलकर धार्मिक और सामाजिक समुदायों के नेताओं से बातचीत करनी चाहिए. चुनावी मेनिफेस्टो में इसे शामिल करने से कुछ नहीं होगा.”
कर्नाटक में ध्रुवीकरण की कोशिश
समान नागरिक संहिता के सियासी फायदे को लेकर रशीद किदवई कहते हैं, ये एक ध्रुवीकरण की कोशिश है. ये इसी तरह की राजनीति का एक हिस्सा है. धार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं को लेकर ऐसा कानून बनाना काफी मुश्किल है. मुस्लिम समुदाय लगातार इसका विरोध करता आया है, क्योंकि यूनिफॉर्म सिविल कोड से समाज में बड़ा बदलाव आएगा. दरअसल इस मामले में ये हो रहा है कि सरकार बिना प्रस्ताव लाए इसे लाने की धमकी दे रहा है, वहीं दूसरा पक्ष इसके नियम-कानून पढ़े बिना ही इसके विरोध में खड़ा है. अगर सरकार 2024 चुनाव से पहले इसका बिल भी ले आती है तो ये भी सिर्फ एक राजनीतिक कदम होगा, बिना लॉ कमीशन की सहमति या प्रस्ताव के ये पास नहीं हो सकता है.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने एनआरसी के मुद्दे पर कहा, जहां तक बात एनआरसी की है तो ये भी यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरह सिर्फ एक चुनावी स्टंट है. बीजेपी को ये बताना चाहिए कि कर्नाटक जैसे राज्य में एनआरसी का क्या असर होगा. कौन से लोग इससे प्रभावित होंगे. पिछली जो कवायद हुई, उसे सरकार को क्यों रोकना पड़ा? सवाल ये भी है कि कर्नाटक में अगर इन चीजों को बीजेपी वाकई लागू करने की सोच रही थी तो पिछले तीन साल में वही सत्ता में थे, फिर क्यों इन्हें लेकर कदम नहीं उठाए गए.
लोकसभा चुनाव में मिलेगा फायदा?
फिलहाल बीजेपी की तरफ से 2024 लोकसभा चुनाव को देखते हुए हर बड़ा फैसला लिया जा रहा है, इसी के तहत एनआरसी और यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे को गर्माया जा रहा है. बीजेपी के एजेंडे में अब इस मुद्दे को सबसे आगे रखा गया है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड पर संसद में बिल भी लाया जा सकता है. जिससे बीजेपी अपने इस एजेंडे को जनता तक व्यापक रूप से पहुंचा सकती है. भले ही यूनिफॉर्म सिविल कोड इतनी जल्दी लागू न हो, लेकिन बीजेपी इस मुद्दे को उछालकर पूरी तरह ध्रुवीकरण कर सकती है, जिसका फायदा हर बार पार्टी को मिलता रहा है.
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड
पिछले कई दशकों से समान नागरिक संहिता का मुद्दा हर बार उठा है, देशभर में इसे लागू करने की बात हुई है, लेकिन कभी भी इसे लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. इसके तहत सभी धर्म, जाति और समुदायों के लिए सिर्फ एक ही कानून होगा. इसमें किसी के लिए भी कोई छूट नहीं दी जाएगी, सभी एक ही कानून के तहत आएंगे. यानी शादी हो या फिर संपत्ति का बंटवारा हो, सभी को यूनिफॉर्म सिविल कोड का पालन करना होगा. बीजेपी का कहना है कि जब तक समान नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक देश में लैंगिक समानता नहीं हो सकती है. संविधान में भी इसे लागू करने का पक्ष लिया गया है.
सरकार के लिए क्यों है चुनौतीपूर्ण
देश में अलग-अलग धर्मों के लिए कुछ मामलों में अलग कानून बनाए गए हैं. जिनमें शादी, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के कुछ मामले शामिल हैं. देश में इन मामलों में मुस्लिम अलग कानून का पालन करते हैं. वहीं हिंदू धर्म में भी अलग-अलग समुदाय की अपनी प्रथाएं हैं, जिनका पालन किया जाता है. इसके लिए अलग राज्य में अलग नियम-कायदे हैं. धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर इनका पालन किया जाता है. हिंदुओं में दक्षिण भारत में करीबी रिश्तों में शादी होती है, जबकि उत्तर भारत में इसे काफी बुरा माना जाता है. गोवा में भी ईसाईयों के लिए अलग कानून का पालन किया जाता है. यहां हिंदू दो शादी कर सकते हैं. ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड सिर्फ मुस्लिमों ही नहीं बल्कि देशभर में रहने वाले हिंदू समुदायों की जिंदगी को भी प्रभावित कर सकता है. इसीलिए सरकार के लिए इस कदम को चुनौतीभरा माना जा रहा है.
क्या है एनआरसी?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप यानी एनआरसी का नाम आपने पिछले कुछ सालों में सुना होगा. इसी एनआरसी को लेकर दिल्ली समेत तमाम राज्यों में जमकर प्रदर्शन भी हुए थे, वहीं कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई. जिसमें कई लोग मारे गए. दरअसल ये नागरिकता पता करने का एक तरीका है, जिसमें केंद्र सरकार की तरफ से देशभर में एक सर्वे कराया जाएगा. इस सर्वे में आपको अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. नागरिकता साबित करने के लिए वोटर कार्ड, आधार कार्ड या फिर पैन कार्ड ही काफी नहीं होगा. इसके लिए आपको अपने पूर्वजों के (दादा-परदादा) के दस्तावेजों को दिखाना होगा. जिससे ये साबित होगा कि आप कितने साल से देश में रहते हैं और नागरिकता के हकदार हैं या फिर नहीं.
एनआरसी को लेकर सरकार का रुख
अब एनआरसी को लेकर केंद्र सरकार का रुख भी आपको बताते हैं, गृहमंत्री अमित शाह खुलेआम तमाम मंचों और संसद में ये साफ कर चुके हैं कि एनआरसी लागू होकर रहेगा. कई चुनावी जनसभाओं में भी उन्होंने ठोक बजाकर ये बात कही. बकायदा उन्होंने इसकी पूरी क्रोनोलॉजी बताई. उन्होंने कहा कि इसमें धर्म के आधार पर कुछ नहीं होगा, जो कोई भी एनआरसी के तहत भारत का नागरिक नहीं पाया जाएगा, उसे निकाल दिया जाएगा. हालांकि पीएम मोदी ने 2019 में कहा कि मेरी सरकार आने के बाद एनआरसी शब्द पर कहीं भी कोई चर्चा नहीं हुई है. इस दौरान विपक्षी नेताओं ने सरकार का जमकर मजाक बनाया और कहा कि पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह एनआरसी पर विरोधाभासी बयान क्यों दे रहे हैं? बता दें कि इससे पहले असम में जो एनआरसी की प्रक्रिया हुई, उसमें कई तरह की खामियां पाईं गईं, जिससे लाखों लोगों की नागरिकता पर संकट खड़ा हो गया. इसे लेकर सरकार को जमकर घेरा गया. यहां करोड़ों रुपये के घोटाले का भी आरोप लगा था. बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
हालांकि अब इसे चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बनाया जा रहा है. यानी कुल मिलाकर हर चुनावी माहौल में एनआरसी को म्यान से एक सियासी हथियार के तौर पर निकाला जाता है और फिर उसे वापस म्यान में डाल दिया जाता है. विपक्ष भी बीजेपी सरकार पर आरोप लगाता आया है कि सत्ता में पांच साल रहने के बाद चुनाव से ठीक पहले ही सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड और एनआरसी की याद क्यों आती है. विपक्ष भी इसे बीजेपी का ध्रुवीकरण का एक हथियार बताता रहा है.