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Hijab Row: हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार 10 दिनों तक चली सुनवाई, जानें पक्ष-विपक्ष में क्या दी गई थीं दलीलें

एक महिला को हिजाब (Hijab) चुनने की आजादी… कर्नाटक (Karnataka) से लेकर ईरान (Iran) तक इस मामले को लेकर बवाल हो रहा है. एक तरफ ईरान में जहां महिलाएं उस कानून का विरोध कर रही हैं जो उन्हें हिजाब पहनने के लिए मजबूर करता है तो वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक की महिलाएं हिजाब पहनने की मांग कर रही हैं. देखने और सुनने में तो दोनों ही मामले एक दूसरे के विरोधी लगते हैं लेकिन तर्क एक ही निकलकर आता है कि एक महिला के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वो तय कर सके कि उसे क्या पहनना है और क्या नहीं.

कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 10 दिनों तक सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों के पक्ष को सुना, स्कूल का पक्ष भी जाना, शिक्षकों से बात की और कई तरह के विचारों पर विमर्श भी किया. अब उन तमाम दलीलों को सुनने के बाद फैसले की घड़ी आई तो दोनों जज एक मत नहीं हुए. दोनों जज जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की अलग-अलग राय बनी और अब मामला बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया.

अब बात उन तर्कों की करते हैं कि जिन पर हिजाब बैन का विवाद टिका हुआ है. इस पूरे विवाद में सिर्फ दो पक्ष हैं. एक पक्ष वो है जो हिजाब पहनने को अधिकार मानता है, तो वहीं दूसरा पक्ष वो है जो स्कूल में हिजाब पहनने को गलत मानता है. इन्ही दोनों पक्षों पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार 10 दिनों तक सुनवाई हुई. दोनों पक्षों की तरफ से क्या क्या दलील दी गई, इस पर एक नजर डालते हैं.

हिजाब पहनने वाला पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई तो मुस्लिम छात्राओं ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि संविधान में सभी को अपने धर्म के पालन का अधिकार है. साथ ही कहा गया कि हिजाब पहनने से कानून-व्यवस्था को किसी भी तरह का खतरा नहीं है. जब बाकी धर्मों के लोग क्रॉस या रुद्राक्ष पहन सकते हैं तो हिजाब पर बैन क्यों लगाया जा रहा है. शैक्षणिक संस्थानों में यूनिफॉर्म के रंग वाला दुपट्टा पहना जा सकता है. इसमें दुनिया के बाकी देशों का भी तर्क दिया गया था. जहां ऐसे पहनावे को मान्यता दी गई है. याचिका में कहा गया कि सरकार का मकसद एक धर्म को निशाना बनाना है. हिजाब पूरी तरह से आस्था का मामला है.

ये दलीलें तो याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में रखीं. दूसरी तरफ इन्ही दलीलों के जवाब में राज्य सरकार और शिक्षकों के वकीलों ने अपने तर्क दिए.

हिजाब न पहनने वाला पक्ष

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सबसे पहले बहस राज्य सरकार के सर्कुलर पर हुई थी जिसमें हिजाब पर बैन लगाने की बात हुई थी. तब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में जोर देकर कहा था कि आजादी के 75 साल बाद हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की सोची? ऐसे में सरकार की तरफ से जो वकील कोर्ट में पेश हुए उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी. उन्होंने भी जोर देकर कहा कि इस सर्कुलर में किसी भी तरह से धार्मिक पहलू को छुआ तक नहीं गया है. जो प्रतिबंध लगा है वो सिर्फ क्लास तक रखा गया है. उन्होंने बताया कि कर्नाटक सरकार 10वीं तक के छात्रों को मुफ्त ड्रेस देती है. पूरी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने पीएफआई का भी जिक्र किया. पीएफआई की भूमिका को लेकर भी सवाल किए.

राज्य सरकार के वकील ने आरोप लगाया था कि इस पूरे मामले में छात्राओं को भड़काने का काम किया गया. पीएफआई की तरफ से सोशल मीडिया के जरिए छात्राओं से हिजाब पहनने की अपील की गई थी. स्कूलों हिजाब पहनने की बात की गई. इससे पहले तक स्कूलों में हिजाब पहनने को लेकर कोई विवाद नहीं था. इसके अलावा, एक तर्क ये भी रखा गया कि स्कूलों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन उस प्रतिबंध से महिलाएं कम इस्लामी नहीं हो जाती है. इसी तरह ईरान में महिलाएं हिजाब के खिलाफ इस समय प्रदर्शन कर रही हैं, वे हिजाब नहीं पहनना चाहती हैं. स्कूलों में यूनिफॉर्म का चलन है, इस चलन को समानता और एकरूपता के लिए बनाया गया है.

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