UP Politics: 2024 से पहले मुस्लिमों वोटरों को लुभाने में जुटी मायावती, आजम खान के समर्थन में ट्वीट कर रहे इशारा
बसपा (BSP) की मुखिया मायावती (Mayawati) ने एक बार फिर आजम खान (Azam Khan) के बहाने मुस्लिम वोटों (Muslim Vote) को अपनी ओर लुभाने का दांव चलना शुरू कर दिया है. जेल में बंद सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान का पक्ष लेकर वह ‘मिशन 2024’ को साधने का प्रयास कर रही हैं. वह दलित और मुस्लिम एका बनाने की कोशिश में लगी हैं.
दरअसल, विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों को 89 टिकट देने के बावजूद भी उनको सफलता नहीं मिली. इसी कारण उन्होंने तुरंत बाद ही मुस्लिमों को लेकर ट्वीट और बयानबाजी शुरू कर दी है. उनको लगता है कि अगर 2024 में दलित की तरह मुस्लिम भी उनके पाले में आ जाएं तो वह अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब हो सकती हैं. वहीं, इन दिनों आजम खान सपा से नाराज चल रहे हैं. आजम के समर्थकों ने खुले मंच से सपा का विरोध किया है. हालांकि अभी तक आजम के परिवार से नाराजगी की कोई बात निकल कर सामने नहीं आई है. लेकिन आजम का सपा के विधायक से न मिलना इस ओर इशारा करता है. ऐसे में बसपा मुखिया कोई भी दांव खाली नहीं छोड़ना चाहती हैं.
खोया जनाधार तो आजम बने सहारा
बसपा के एक बड़े नेता ने बताया कि अपने खोए जनाधार को पाने के लिए दलित और मुस्लिम को एक करना बहुत जरूरी है. इन दिनों बसपा में कोई बड़ा नेता बचा नहीं है. आजम खान मुस्लिमों के बड़े नेताओं में शुमार हैं. उनके साथ अन्याय भी हो रहा है. सपा को जिस तरह उनका साथ देना चाहिए. वह नहीं दे रही है क्योंकि वह अपने परिवार के झगड़े निपटाने में लगे है. बसपा में नसीमुद्दीन चेहरा होते थे लेकिन इन दिनों वह कांग्रेस में हैं. मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन वह कुछ कर नहीं सके। आजम पुराने नेता हैं उनके साथ मुस्लिमों के अलावा सहानुभूति का भी वोट है इसलिए ट्वीट के जरिए मायावती ने उनका पक्ष लेकर बड़ा संदेश देने का प्रयास किया है.
बीजेपी पर हमला कर मुस्लिम वोटरों को दे रहीं संदेश
उल्लेखनीय है कि मायावती ने गुरुवार को बीजेपी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया था, ‘यूपी सरकार अपने विरोधियों पर लगातार द्वेषपूर्ण व आतंकित कार्यवाही कर रही है. वरिष्ठ नेता आजम खान करीब सवा दो साल से जेल में बंद हैं. यह लोगों की नजरों में न्याय का गला घोटना नहीं तो क्या है.’
मायावती ने मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के लिए यह कोई पहला संदेश नहीं दिया है. विधानसभा में हार के बाद उन्हें आगाह किया था. इसके बाद से उनके प्रति सहानुभूति भी दिखाने में वह पीछे नहीं हट रही हैं क्योंकि 2007 की सरकार बनाने में दलितों की तरह मुस्लिमों ने भी खुलकर साथ दिया था इसलिए बसपा इस फिराक में है कि किसी तरीके से सपा में गए मुस्लिम समुदाय के वोटरों का बड़ा हिस्सा उनके साथ जुड़ जाए, तो उनका खेल सुधर हो जाएगा.
क्या सपा को कमजोर करने के फिराक में हैं माया?
करीब तीन दशकों से यूपी की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि आजम खान और बसपा मुखिया के बीच कभी सहज रिश्ते नहीं रहे. अपनी-अपनी सरकारों में दोनों एक दूसरे पर कटाक्ष करने में पीछे नहीं रहे हैं. माया जानती हैं कि आजम सपा के संस्थापक सदस्यों में एक हैं. उनके बसपा में आने की उम्मीद कम है. दोनों के बीच में कोई संवाद नहीं रहा है. पिछले कुछ सालों से मायावती ने जिस प्रकार से अपने परंपरागत वोट खोया है, चाहे दलितों का हो या मुस्लिमों का. इस कारण अपने वोट बैंक को बचाने में लग गई हैं. मुस्लिमों को चेहरे के प्रति सहानुभूति दिखा रही है इसलिए आजम के सहारे संदेश देने का प्रयास कर रही हैं. वह इस समुदाय के प्रति संवेदना दिखा रही हैं. आजम सपा से अलग होते हैं तो वह अपनी राजनीतिक संभावना तलाश सकती हैं. वह चाहती है कि सपा किसी न किसी तरह कमजोर हों जिसका फायदा वह ले सकें.