विस्तार
पूर्व पत्रकार और लेखक माहुरकर ने एक ट्वीट में लिखा, ‘बिना भय या पक्षपात के फैसलों का मील का पत्थर पार किया।’ माहुरकर ने लिखा कि मैंने एक फैसले में कहा था कि एक पांडुलिपि राष्ट्रीय संपत्ति होती है, चाहे उसका मालिकाना हक सरकार के पास हो या किसी निजी इकाई के पास। भले ही वह विरासत को सुरक्षित रखने के लिए किसी निजी संस्था या व्यक्ति को दान में ही क्यों न मिली हो। इस फैसले का पूरी दुनिया के विद्वानों ने स्वागत किया था। ‘
माहुरकर ने आगे लिखा कि मैंने अपने फैसले में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को निर्देश दिया था कि वह निजी निकायों की उन सभी तीन लाख पांडुलिपियों को सार्वजनिक क्षेत्र में रखे जिन्हें शोधार्थियों के लाभ के लिए डिजिटाइज किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि केवल ऐसी 28,000 पांडुलिपियां ही सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध थीं। उदय माहुरकर का कहना है कि मेरे इस फैसले का भारतविदों (इंडोलॉजिस्ट्स) ने खूब सराहना की थी और इसका स्वागत किया था।
