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इंदौर: रंगारंग गेर में उमड़े लाखों लोग, मिसाइलों से उड़ा रंग, भगवा ध्वज लेकर लगाए भारत माता के जयकारे

रंगपंचमी पर दो साल बाद निकली रंगारंग गेर में इंदौरी रंग गए। चारों ओर रंगों की बौछार नजर आई। आसमान भी सतरंगी हो गया। लाखों लोगों का हुजूम ऐतिहासिक गेर का साक्षी बना और हर चेहरे पर रंगों का उल्लास नजर आया।

दरअसल कोरोना के कारण दो सालों से गेर नहीं निकल सकी। इस बार खूब रंग चढ़ा और इंदौर का हर कोना रंगों में रंगा नजर आया। सुबह करीब साढ़े दस बजे गेर निकलने की शुरुआत हुई। अलग-अलग जगह से अलग-अलग गेर निकली। सबसे आगे मोरल क्लब की गेर थी, जिसके बाद दूसरी गेर पीछे-पीछे चल रही थी। हिन्द रक्षक संगठन की फाग यात्रा भी इसमें शामिल थी। इसमें युवा भगवा ध्वज लेकर चल रहे थे। भारत माता की जय के नारे लगाते हुए लोग गेर में रंगों से रंगे हुए थे। मोरल क्लब की गेर में करीब दो दर्जन ट्रैक्टर, कंप्रेशर मशीन शामिल थी। मिसाइलों से रंग बरसाया जा रहा था। इस बार गेर में शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी गई। करीब पांच किमी के मार्ग में दो लाख के करीब लोग मौजूद रहे। इंदौर के अलावा देश के दूसरे शहरों से भी लोग गेर देखने पहुंचे। पांच सेक्टरों में गेर मार्ग को बांटा गया है। पुलिस-प्रशासन के अधिकारी इमारतों से इसकी निगरानी कर रहे हैं।  करीब चार किमी के क्षेत्र में गेर घूमेगी और मिसाइलों से पानी फेंका जाएगा। कलेक्टर मनीष सिंह ने कहा कि दो साल बाद निकल रही गेर को लेकर पुलिस-प्रशासन विशेष अलर्ट पर है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस ने विशेष इंतजाम किए गए हैं। पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्र ने कहा कि सादे कपड़ों में भी पुलिस के जवान भीड़ में असामाजिक तत्वों पर नजर रख रहे हैं। इधर गेर में इस बार युवक-युवतियों व बच्चों में जबरदस्त उत्साह है। आपस में रंग गुलाल उड़ाते हुए चल रहे हैं। सुरक्षा के लिहाज से पुलिस बल तैनात है। करीब चार हजार पुलिसकर्मी मोर्चा संभाल रहे हैं। नगर निगम के कर्मचारी भी तैनात हैं।

रंगनाथ पहलवान डालते थे रंग
गेर के इतिहास की बात करें तो इसके साथ कई किस्से जुड़े हैं। शहर के प्रसिद्ध कवि सत्यनारायण सत्तन ने बताया कि पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरु हुई थी, लेकिन इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे। एक दूसरे को रंग और गुलाल लगात थे। 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगनाथ (रंगू) पहलवान एक बड़े से लोटे में केशरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग मारते थे। यहां से रंग पंचमी पर गेर निकलने का चलन शुरू हुआ। रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठा करते थे। वहां इस तरह गेर खेलने  सार्वजनिक और भव्य पैमाने पर कैसे मनाएं चर्चा हुई। तब तय हुआ कि इलाके की टोरी कॉर्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक दूसरे पर डालेंगे और कहते हैं वहां से इसने भव्य रूप ले लिया। एक बात यह भी कही जाती है कि गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है। होलकर राजघराने के लोग पंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूलों और रंग-गुलाल लेकर  सड़क पर निकल पड़ते थे। रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें रंग लगा देते। इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था। यही परंपरा साल दर साल आगे बढ़ती रही। करीब 300 साल से पंरपरा चली आ रही है। सौ साल पहले इसने भव्य रूप लिया।

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