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रूस पर प्रतिबंधों के बाद चर्चा: क्या बिना डॉलर का उपयोग किए चल सकता है काम?

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यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर अब तक के सबसे सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। इस वजह से उसका पश्चिमी देशों के साथ वित्तीय संबंध लगभग पूरी तरह टूट गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस मामले में रूस की हालत अब उत्तर कोरिया जैसी हो गई है। इससे रूसी कंपनियों के डिफॉल्ट करने (तय समय पर कर्जा ना चुका पाने) की आशंका बेहद गहरी हो गई है। लेकिन पश्चिमी देशों के जिस फैसले ने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा है, वह रूस के सेंट्रल बैंक पर लगाए गए प्रतिबंध हैं। बैंक ऑफ रसा के जमा धन को अमेरिका ने जब्त कर लेने का फैसला किया है।

लेकिन अमेरिका के इस कदम ने डॉलर में अपना धन रखने की दशकों से जारी चलन पर बहस खड़ी कर दी है। खास कर इस मामले में चीन के रुख पर विशेषज्ञों की नजर है, जिसके पास दो ट्रिलियन डॉलर से अधिक की अमेरिकी मुद्रा है। विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि क्या अमेरिका के हालिया कदम को देखते हुए अब चीन और ऐसे बहुत से देश किसी अन्य विकल्प की तलाश करेंगे और क्या दुनिया में ऐसे विकल्प मौजूद हैं?

अमेरिका से टकराव महंगा

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने एक इंटरव्यू में कहा है कि विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन धन की सुरक्षा, नकदी की उपलब्धता, और भंडार में मौजूद धन पर मिलने वाले ब्याज से प्रेरित होता है। अभी डॉलर, यूरो और येन जैसी मुद्राएं इन कसौटियों पर खरी उतरती हैं। उन्होंने कहा कि रूस पर हुई कार्रवाई से विभिन्न देशों की सरकारें ये सबक लेंगी कि अमेरिकी प्रतिबंधों का खराब असर होता है, यानी अमेरिका से टकराव लेना महंगा पड़ता है।

इस बीच कुछ दूसरे विशेषज्ञ अब सलाह दे रहे हैं कि सेंट्रल बैंकों को अब डॉलर में निवेश के बजाय अपना धन कच्चे तेल और सोने जैसी चीजों में लगाना चाहिए। लेकिन एक राय यह है कि सेंट्रल बैंक के अधिकारियों के पास ऐसे व्यापारिक निवेश का कौशल नहीं है। वे सिर्फ वित्तीय प्रबंधन के जानकार होते हैं। इसलिए फिलहाल बहुत से देश डॉलर से पैसा निकाल कर किसी अन्य वस्तु में लगाएंगे, इसकी संभावना कम है।

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