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न्यायमूर्ति मनमोहन व न्यायमूर्ति नवीन चावला ने अपने फैसले में कहा कि सीमा सुरक्षा बल नियम 1969 के नियम 173 के तहत केवल कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की नियुक्ति की है। कोर्ट ऑफ इंक्वायरी एक तथ्य खोजने वाली संस्था से ज्यादा कुछ नहीं है। इसके निष्कर्ष एक प्रारंभिक रिपोर्ट की प्रकृति के होंगे जो बीएसएफ को अपनी भविष्य की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने में सुविधा प्रदान करेंगे।
पीठ ने कहा याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की गई है। इसके अलावा इस स्तर पर याचिकाकर्ता आरोपी नहीं है और इस स्थिति में उसका विचार है कि उसे एक आरोपी के रूप में पेश किए जाने की संभावना है। पीठ ने कहा उनकी राय में कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी नियुक्त करने से याचिकाकर्ता को कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ है और बीएसएफ अधिनियम की धारा 47 का उल्लंघन नहीं किया गया है।
याची हंसा दत्त लोहानी ने कहा था कि उसके खिलाफ बीएसएफ द्वारा स्टाफ कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए।याची ने कहा उसके खिलाफ महिला ने यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म और चोट पहुंचाने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद विभागीय जांच शुरू की गई है और याचिकाकर्ता को जांच अधिकारी द्वारा बुलाया गया है।
वहीं 5 दिसंबर 2021 को उन्हें बताया गया कि उनके खिलाफ 2 दिसंबर 2021 को धारा 354 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।याची ने कहा यौन उत्पीड़न और हमले के आधार पर उनके खिलाफ चल रही विभागीय जांच पूर्वाग्रह से ग्रसित है, जबकि इसी तरह के आरोपों और तथ्यों पर पुलिस जांच चल रही है। उन्होंने कहा शिकायतकर्ता बीएसएफ की कर्मी नहीं है और उसे झूठे मामले में फंसाया गया है। ऐसे में ट्रायल कोर्ट की सुनवाई पूरी होने तक विभागीय कार्रवाई पर रोक लगाई जाए।








