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9 हजार 371 के परिजनों को अस्पतालों के लगाने होंगे चक्कर, क्योंकि अस्पताल से इलाज की फाइल नहीं मिली

कोरोना से 9371 मृतकों के परिजनों को मुआवजा पाने के लिए अभी अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ेंगे, क्योंकि अस्पतालों ने उन्हें इलाज की फाइल ही नहीं दी। इसी फाइल में केस पेपर, उपचार संबंधी सभी कागजात और जांचें होती हैं। जिन मृतकों के कॉज ऑफ डेथ में कोरोना का जिक्र नहीं है, उनके मृत्य सर्टिफिकेट में मौत का कारण कोरोना जोड़ने के लिए परिजनों के फॉर्म जमा करते समय ये कागजात देने अनिवार्य हैं। अब जब फाइल अस्पतालों के पास हैं तो वे कैसे फॉर्म भर पाएंगे।

इसके उन्हें अस्पतालों में जाकर फाइल लेनी होगी। कोरोना काल में शहर में कोरोना अस्पतालों में लगभग 11000 मौतें हुई हैं। इनमें से 9371 के कॉज ऑफ डेथ में कोविड का जिक्र नहीं है। इनकी मौतों का कारण कोरोना नहीं माना गया है। अब जब मुआवजे की बात चल रही है तो परिजनों के पास कॉज ऑफ डेथ के अलावा अस्पताल से इलाज की फाइल तक नहीं मिली है। सरकारी-निजी अस्पतालों में हजारों मृतकों की फाइल पड़ी है।

अस्पतालों का कहना है कि इसे रिकॉर्ड के लिए रखा गया है। फाइल में मरीज की जांचें और इलाज का जिक्र रहता है। इसके साथ इलाज करने वाले डॉक्टर का भी जिक्र होता है। मरीज को कब कैसे और कौन सा इलाज दिया गया। कौन सी रिपोर्ट कब-कब कराई गई जैसी तमाम जानकारी होती हैं। शहर में 11 हजार से अधिक मरीजों की मौत हुई हैं, लेकिन केवल 1629 मरीजों की ही मौत कोरोना में गिनी गई है।

इन्हें कोरोना के मृतकों में नहीं गिना गया
1. जिनका कोरोना अस्पताल में कोरोना का इलाज हुआ, लेकिन उनकी आरटीपीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आई और मौत हो गई
2. रैपिड टेस्ट पॉजिटिव आया, पर आरटीपीसीआर निगेटिव, कोरोना के इलाज के दौरान मौत हुई
3. सीटी स्कैन में कोरोना की पुष्टि हुई, लेकिन आरटीपीसीआर निगेटिव, इलाज के दौरान मौत

डेथ ऑडिट कमेटी ने किसे माना कोरोना मृतक, किसे नहीं
पहली लहर में कोरोना पॉजिटिव होने पर ही कोरोना से मौत माना जाता था
दूसरी लहर में रैपिड पॉजिटिव वाले मरीजों की मौत को नहीं माना गया
आरटीपीसीआर पॉजिटिव हो लेकिन साथ में कोई गंभीर बीमारी भी हो तो भी कोरोना से मौत नहीं गिना
सीटी स्कैन जांच में कोरोना पॉजिटिव, पर मौत को कोरोना नहीं गिना गया
आरटीपीसीआर पॉजिटिव और अन्य कोई बीमारी नहीं होने पर इलाज के दौरान मौत को ही कोरोना से मौत माना गया

मृतक प्रमाण पत्र जरूरी
निजी और सरकारी अस्पतालों ने कहा कि परिजन इलाज की फाइल मांगेगे तो दी जाएगी। अब परिजनों को फाइल लेने के लिए अस्पतालों में जाना होगा और मृतक से संबंधित सभी जरूरी कागजात दिखाने होंगे।

मरीज की फाइल रिकॉर्ड के लिए हम अस्पताल में ही रख लेते हैं
यहां से हम मरीज की फाइल नहीं देते, उसे रिकॉर्ड के लिए रखा जाता है। इलाज के दौरान मौत होने पर कॉज ऑफ डेथ दे देते हैं, जिसमें कोरोना पॉजिटिव, निगेटिव और संदिग्ध का जिक्र होता है। अगर कोरोना संबंधी कोई बात होगी तो उसका भी जिक्र डेथ सर्टिफिकेट में होता ही है। -डॉ. बंदना देसाई, अधीक्षक स्मीमेर अस्पताल

परिजनों को जांच रिपोर्ट दी जाती है, अगर फाइल मांगते हैं तो मिलेगी
जांच की सभी रिपोर्ट परिजन को दी जाती है, जिसमे ब्लड टेस्ट, एक्स-रे, सीटी स्कैन जैसी सभी जांच रिपोर्ट शामिल है। इसके अलावा अगर मरीज की मौत हुई तो डेथ सर्टिफिकेट में इलाज का जिक्र भी किया जाता है। हम केवल केस समरी की फाइल नहीं देते। कोई मरीज फाइल मांगता है तो उसे फाइल दी जाएगी। -डॉ. समीर गामी, यूनिक अस्पताल

हम इलाज की फाइल की कॉपी मृतक के परिजनों को दे सकते हैं
हम मृतक के परिजनों को इलाज की फाइल नहीं देते। हां, अगर परिजनों को फाइल की बहुत जरूरत है तो उसकी प्रति दे सकते हैं। ओरिजिनल फाइल हमारे रिकॉर्ड के लिए रखी जाती है। किसी मरीज की मौत के बाद उसके परिजनों को कॉज ऑफ डेथ दे दिया जाता है, जिसमें फाइल और जांच से संबंधित सभी जानकारियां रहती हैं।
-डॉ. एम. डिसिल्वा, महावीर अस्पताल

हम फाइल देते हैं, पर कॉज ऑफ डेथ के बाद इसकी जरूरत नहीं
अस्पताल से कॉज ऑफ डेथ दिया जाता है। डेथ ऑडिट कमेटी ने अपना जो भी फैसला दिया उसी के आधार में कॉज ऑफ डेथ दिया जाता है। अगर मृतक की इलाज की फाइल परिजन मांगते हैं तो हम देते हैं, कॉज ऑफ डेथ के बाद इसकी जरूरत नहीं रहती। -डॉ. गणेश गोवेकर, अधीक्षक सिविल

फॉर्म जमा कराते समय इलाज से संबंधित दस्तावेज देना जरूरी है
परिजन के आवेदन के दौरान दिए गए दस्तावेज को देखते हुए कंडीशन दी गई है। अगर मरीज का दस्तावेज उस कंडीशन में आ जाता है तो उसे मुआवजा मिलेगा। हाल के फैसले के अनुसार अगर कॉज ऑफ डेथ में कहीं भी कोविड का जिक्र है तो उसे मुआवजा मिलेगा। अगर डेथ सर्टिफिकेट में कोरोना का जिक्र नहीं है, तो इसके लिए भी मनपा की कमेटी में भी आवेदन किया जा सकेगा। फॉर्म जमा करते समय इलाज से संबंधित दस्तावेज देना जरूरी है। -डॉ. प्रदीप उमरीगर, स्वास्थ्य अधिकारी मनपा

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