कहीं महंगाई मुद्दा तो कहीं रोजगार की बात, कोई बताता है महंगे पेट्रोल से निजात के उपाय
उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव की राजनीतिक चर्चाएं इन जगहों पर अब आम हो चुकी हैं। अमर उजाला अपनी उत्तर प्रदेश की चुनावी यात्रा के दौरान लखनऊ से 19 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले के अमरसंडा गांव पहुंचा.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एकदम सटा हुआ जिला बाराबंकी है। लखनऊ में बड़ी मात्रा में सब्जियां बाराबंकी जिले से आती हैं। जब आप जिले की अंदरूनी सड़कों से होते हुए कस्बों और गांवों की ओर चलेंगे तो सड़कों पर सजी हुई सब्जी मंडियों से लेकर गांव तक में चुनाव का माहौल दिख जाएगा। उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव की राजनीतिक चर्चाएं इन जगहों पर अब आम हो चुकी हैं। अमर उजाला अपनी उत्तर प्रदेश की चुनावी यात्रा के दौरान लखनऊ से 19 किलोमीटर दूर बाराबंकी जिले के अमरसंडा गांव पहुंचा।
गांव में ही मिलें रोजगार के अवसर
गांव में सब्जी लगाने वाले लकी मौर्या महज 18 साल के हैं। अब तक उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। लकी कहते हैं कि उन्हें अपनी सब्जी की दुकान से रोजी-रोटी चलाने की फुर्सत नहीं मिलती तो वह वोट कैसे बनवाएं। लेकिन उनका कहना है कि अगर रोजगार के ढंग के अवसर उन्हें अपने गांव में ही मिल जाएं तो शायद उनकी जिंदगी बदल जाती। दरअसल लकी के खेत सड़क के किनारे ही हैं और वह उसी खेत में उगाई गई सब्जियों को सड़क के किनारे लगने वाली सब्जी मंडी में बेचते हैं। लकी का कहना है उन्हें उतनी कीमत नहीं मिलती, जितनी कि लखनऊ के बाजारों में या अन्य शहरों के बाजारों में सब्जी बेचने पर मिलती है।
सब्जियों के दामों में इतना फर्क क्यों
बगल में ही सब्जी ले रहे दिलीप का कहना है कि चुनाव तो आ चुका है, लेकिन वोट किसे देंगे इसे लेकर उन्होंने अभी तय नहीं किया है। हालांकि दिलीप कहते हैं कि उन्होंने सोच तो रखा है कि वोट किसे दिया जाएगा। शहरों में महंगी बिक रही सब्जियां और गांव में कम कीमत पर मिलने वाली सब्जियों को लेकर उनकी नाराजगी भी है। दिलीप कहते हैं कि बेहतर है कि सब्जियों के रेट एक जैसे हों। और अगर कुछ अंतर भी हो तो महज माल भाड़े का किराया जोड़कर थोड़ी सी कीमत बढ़ सकती है। लेकिन गांव और शहर में बिकने वाली सब्जियों का भारी अंतर ठीक नहीं है। वे कहते हैं सरकार को यह सिस्टम बदलना चाहिए ताकि कीमतों में इतना अंतर ना हो।
इसी बाजार में सब्जी खरीद रहे बाराबंकी जिले के टिकैतगंज निवासी ओमप्रकाश सब्जियों की कीमत को लेकर कहते हैं कि गांवों में बिकने वाली सब्जियां सस्ती ही होंगी क्योंकि इन्हें माल भाड़ा नहीं देना पड़ता है। लेकिन वह इस बात से बिल्कुल इत्तेफाक रखते हैं कि शहरों में बिकने वाली सब्जियों की कीमत आसमान पर नहीं होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश में चुनाव को लेकर उनका मत बिल्कुल स्पष्ट है। वह कहते हैं भाजपा की सरकार में बहुत चीजें सुधरी हैं।
पेट्रोल की बढ़ी कीमतों पर हाय तौबा क्यों, पैदल चलें
इसी बाजार में मिले बबलू बाल कहते हैं कि भाजपा सरकार में दंगे नहीं हो रहे हैं उन्हें वह इसको सरकार का प्लस प्वाइंट बताते हैं। हालांकि वह मानते हैं महंगाई है लेकिन उनका तर्क है कि जिस तरीके की सरकार उत्तर प्रदेश में चल रही है उसके ऊपर महंगाई का विशेष असर नहीं होने वाला। पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर बबलू अपना अलग तर्क देते हैं। वे कहते हैं पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों पर लोग बेवजह हायतौबा मचा रहे हैं। उन्होंने लोगों को सलाह दे डाली कि ज्यादा गाड़ियां चलाओगे तो पेट्रोल महंगा ही लगेगा। बबलू ने बताया कि जहां तक आप पैदल चल सकते हैं, वहां भी अगर आप गाड़ी का इस्तेमाल करेंगे तो निश्चित तौर पर बढ़ा हुआ पेट्रोल आपकी जेब को ढीला ही करेगा। बेहतर है आप जहां पर अन्य साधनों जिसमें पैदल और साइकिल का इस्तेमाल कर सकते हों करें, तो पेट्रोल की कीमत आपका कुछ नहीं बिगाड़ेगी।