मैंने बच्चों, बुजुर्गों को टुकड़ों में बिखरे देखा; जिस्म इस तरह हवा में उड़े जैसे तूफान प्लास्टिक की थैलियां उड़ा देता हो
काबुल के हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर गुरुवार शाम हुए धमाकों में 108 लोगों की जान चली गई। आतंकी हमले की जो तस्वीरें आईं, वो दहलाने वाली थीं। इस ब्लास्ट में बाल-बाल बचे अमेरिकी नागरिक ने आंखोंदेखी बयां की है। वो स्पेशल अमेरिकी वीजा पर अफगानिस्तान आए थे और इंटरनेशनल डेवलपमेंट ग्रुप से जुड़े थे।
अब अफगानिस्तान तालिबान के कब्जे में है और वो पश्चिमी संस्था से जुड़े हुए हैं। ऐसे में उन्होंने नाम जाहिर नहीं किया है। कहने लगे- धमाका हुआ तो बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के जिस्म के टुकड़े हवा में इस तरह उड़ते देखे, जैसे कोई तूफान प्लास्टिक की थैलियों को उड़ा देता हो। पढ़िए काबुल धमाके की आंखोंदेखी उन्हीं की जुबानी…
“मेरे लिए गुरुवार का दिन कुछ जल्दी ही शुरू हो गया था। हजारों लोगों की तरह मैं भी उम्मीद कर रहा था कि एयरपोर्ट के गेट के भीतर दाखिल हो जाऊंगा। रेस्क्यू ऑपरेशन के आखिरी दिनों में शायद किसी फ्लाइट में मुझे भी जगह मिल जाए।”
“एयरपोर्ट के अब्बे गेट पर इंतजार करते-करते करीब 10 घंटे बीत गए थे। शाम के 5 बजे होंगे। अचानक ऐसा लगा कि जैसे किसी ने पैरों के नीचे से जमीन खींच ली हो। ऐसा लगा कि कान के पर्दे फट गए। कुछ पल के लिए सुनने की ताकत खो बैठा।”
“मैंने लोगों को और उनके शरीर के टुकड़ों को इस तरह हवा में उड़ता देखा, जैसे कोई तूफान प्लास्टिक की थैलियों को उड़ा देता हो। बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के शरीर, उनके टुकड़े हर तरफ बिखरे पड़े थे। इस जिंदगी में कयामत का दिन देखना मुमकिन नहीं था, लेकिन मैंने कयामत का दिन देखा। अपनी आंखों से मैं इसका गवाह बना।”
“जहां धमाका हुआ, वहां आज कोई हालात संभालने वाला नहीं है। ऐसा कोई नहीं है, जो वहां पड़ी लाशों को लोगों की नजर से दूर ले जाए या घायलों को अस्पताल ले जाए। कल तो घायलों को मदद भी मिल गई थी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। आज लाशें सड़क पर और नाले में पड़ी दिखाई दे रही हैं। इसमें जो थोड़ा बहुत पानी है, वो भी खून से लाल हो गया है।”
“जिस्मानी तौर पर तो मैं अब ठीक हूं, पर कल के धमाके के बाद मेरे जेहन पर जो जख्म लगे हैं, वो शायद ही मुझे कभी नॉर्मल जिंदगी जीने देंगे।’